लाडो लक्ष्मी: नाम में अपनापन, इरादे में दम
हरियाणा सरकार ने दीनदयाल लाडो लक्ष्मी योजना का परदा उठाया और साथ ही एक मोबाइल ऐप भी लॉन्च कर दिया। सुनने में सरल, असर में बड़ा। सोचिए, घर बैठे रजिस्ट्रेशन, वहीं से वेरिफिकेशन, और शिकायत भी निपटे। काउंटर पर लाइन नहीं, फाइल का बोझ नहीं, बीच में दलाल नहीं। बस फोन, नेट और थोड़ा धैर्य। कई बार नीति की चमक एलान में दिखती है, असली परीक्षा उसके रोजमर्रा के इस्तेमाल में होती है। यहीं से हमारी कहानी शुरू होती है।
योजना की झलकियां जिनसे बात आगे बढ़े
सरकार ने साफ कहा है कि 23 से 60 वर्ष तक की पात्र महिलाएं, जिनके परिवार की सालाना आय लगभग एक लाख Rupees के दायरे तक है, उन्हें हर महीने 2100 Rupees डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए मिलेंगे। एक ही घर की कई योग्य महिलाएं भी लाभ ले सकती हैं। पहली फेज में करीब 20 लाख महिलाओं तक पहुंचने का लक्ष्य। और हां, इस सबके लिए पांच हजार करोड़ Rupees का बजट अंकित। ये सब बातें कागज पर नहीं, मंच से कही गईं, आंकड़ों के साथ।
ऐप आया तो उम्मीदें भी आईं
ऐप की असली ताकत क्या है। तीन बातें। पहला, आवेदन की बाधा कम होती है। दूसरा, सरकारी दफ्तर का चक्कर घटता है। तीसरा, डेटा की ट्रेसबिलिटी बढ़ती है। कुछ ही घंटों में हजारों डाउनलोड और आवेदनों की खबर आई तो लगा कि लोगों ने इसे अपनाया भी। लेकिन अपनाने और टिकाऊ इस्तेमाल में फर्क होता है। शुरुआती जोश के बाद असली कसौटी तब है जब गांव का नेटवर्क डगमगाए, जब ओटीपी देर से आए, या जब किसी दस्तावेज़ की स्कैन क्वालिटी ऐप के ऑटो वेलिडेशन को खटक जाए।
मेरा मत: योजना सही दिशा में, पर दो तीन काले बादल
ईमानदारी से कहूं तो 2100 Rupees प्रति महीना कोई चमत्कार नहीं, पर ये स्थिर सहारा है। राशन, गैस, बच्चों की फीस, दवाई, ये सब खर्च महीना दर महीना आता है। ऐसे में एक फिक्स सपोर्ट घर के बजट में सांस देता है। पर काले बादल भी हैं।
- लक्ष्यीकरण की चुनौती: परिवार की आय एक लाख Rupees तक की शर्त सरल दिखती है, पर प्रमाणन जटिल है। ग्रामीण घरों में आय फ्लक्चुएट करती है। फसल अच्छी हुई तो आय बढ़ी, अगले साल सूखा तो घट गई। ऐसे में स्थायी आय का प्रमाणन एक और पहेली बन सकता है।
- डिजिटल डिवाइड: स्मार्टफोन और इंटरनेट का प्रसार बहुत हुआ, पर हर हाथ में स्थिर डेटा नहीं। दफ्तर जाने की जगह अगर अब सीएससी सेंटर या पड़ोसी के फोन पर निर्भरता बढ़े, तो वही पुराना चक्कर नया रूप लेकर लौट आता है।
- डेटा प्राइवेसी: महिलाओं के बैंक डिटेल, पहचान, परिवार आईडी, ये सब ऐप में है। सवाल उठेगा कि डाटा किस सर्वर पर, कितनी देर, किन प्रोटोकॉल के तहत। भरोसा कम्युनिकेशन से बनता है। प्राइवेसी पॉलिसी सरल हिंदी में, बड़े अक्षरों में, ऐप के पहले स्क्रीन पर होनी चाहिए।
क्यों ये स्कीम सुर्खियों के लायक है
टाइमिंग। चुनावी विमर्श में महिला सशक्तिकरण पहली पंक्ति में है। सेल्फ हेल्प ग्रुप्स, ड्रोन दीदी, उज्ज्वला से लेकर क्रेच फ़ैसिलिटीज़ तक, हर जगह फोकस महिलाएं। लाडो लक्ष्मी इस नैरेटिव को स्टेडियम के स्कोरबोर्ड की तरह बड़ा बनाती है। और नाम में जो अपनापन है न, वो सांस्कृतिक कनेक्ट बनाता है। गांव की चाची भी कह देंगी, लाडो वाली स्कीम है, फॉर्म भरवा दे। नाम मायने रखता है, याद रह जाता है।
स्टोरीटेलिंग मोड: एक दिन लाडो की डायरी से
मान लो पानीपत की लाडो सुबह चार बजे उठी। चूल्हा नहीं, गैस है, पर सिलेंडर की कीमत देखते ही माथा ठनकता है। बच्चे स्कूल, ससुर जी की दवाई, दूध वाले का हिसाब, और खुद के लिए सिलाई का छोटा काम। महीने के आखिर में जब हंडिया खाली होती है तो छोटी रकम भी बड़ी लगती है। 2100 Rupees, हा थोड़ा का सहारा, पर सहारा है। दिमाग में तुरंत लिस्ट बनती है। दवाई, स्कूल की नोटबुक, और वो जो पीछे से बकाया था। और अगर ऐप से बिना किसी को कहे, अपने किचन की दीवार से टिककर वो फॉर्म भर ले, तो आत्मनिर्भरता सिर्फ शब्द नहीं रहेगी।
ऐप के छह अनकहे नियम मेरे अनुभव से
- नेटवर्क के पीक टाइम से बचो: सुबह आठ से दस, शाम सात से नौ आमतौर पर नेटवर्क पर भीड़ रहती है। दोपहर या देर रात कोशिश करें। ओटीपी और अपलोड जल्दी होंगे।
- डॉक्यूमेंट स्कैनिंग प्रो टिप: ए4 पेपर पर पहचान पत्र सीधा रखकर फोटो लें। रोशनी बराबर हो। कैमरा स्थिर। फाइल साइज़ कम करने के लिए मीडियम क्वालिटी चुनें।
- नाम और बैंक खाते का स्पेल: बैंक में जो नाम है वही ऐप में टाइप करें। एक अक्षर का फर्क भी डीबीटी को रोक सकता है।
- परिवार पहचान डेटा: अगर फैमिली आईडी पोर्टल में पुरानी आय दर्ज है, इसे अपडेट करा लें। वरना पात्रता स्क्रीन पर रेड X दिखेगा और आप सोचते रह जाएंगे।
- ओटीपी न आए तो घबराएं नहीं: पांच मिनट ठहरें, फिर दोबारा भेजें। सिम कार्ड उसी फोन में रहे। फ्लाइट मोड ऑन ऑफ करने से भी नेटवर्क जाग जाता है।
- स्क्रीनशॉट लो: आवेदन नंबर का स्क्रीनशॉट लें। बाद में स्टेटस ट्रैक करने में यही सबसे बड़ा सहारा होगा।
क्या 2100 Rupees काफी है। एक मिनी बजट एक्सरसाइज
गांव में दूध दो लीटर रोज, महीने में करीब साठ लीटर। शहर में अमूमन थोड़ी महंगी दर। फिर गैस, सब्जी, स्कूल का खर्च, मोबाइल रिचार्ज, मेडिकल। 2100 Rupees सब नहीं भर सकता, पर दो तीन छोटे खर्चों को नियमित कवर कर देगा। आर्थिक अनुसंधान में एक टर्म है फ्रिक्शन कॉस्ट। छोटी रकम समय पर मिल जाए तो उधार लेने की जरूरत कम पड़ती है। ब्याज, प्रतिष्ठा, झिझक सब बचता है। यही सबसे बड़ा इम्पैक्ट है।
सरकार के लिए चेकलिस्ट
- सर्वर स्केलिंग: लॉन्च के बाद लोड बढ़ता है। एकदम से हजारों लॉगिन। सर्वर को इलास्टिक स्केलिंग के साथ सेट करें। कैशिंग, क्यू सिस्टम, रेट लिमिटिंग। तकनीकी लग रहा है, पर असर सीधे यूजर पर होता है।
- हिंदी में सरल भाषा: ऐप, वेबसाइट, हेल्प सेंटर। बहुत दफ़ा टेक्स्ट अनुवाद तो होता है, पर टोन सरकारी रह जाती है। सरल बोलचाल हिंदी, उदाहरण और इमोजी भी चलेंगे, पर शालीन।
- हेल्पलाइन और कॉलबैक: टोल फ्री नंबर बजे और उठे भी। मिस्ड कॉल सिस्टम रखें। बैक कॉल विंडो बताएं, जैसे आज शाम पांच से सात। भरोसा बनता है।
- ऑफलाइन सपोर्ट: वार्ड स्तर पर एक महिला साथी नियुक्त करें जो घर घर जाकर ऐप समझाए। इसे भी स्कीम से मानदेय मिले। एमओयू महिला कॉलेजों के साथ, एनएसएस वालंटियर्स के जरिए।
- ग्रिवांस ट्रैकिंग पब्लिक डैशबोर्ड: कितनी शिकायतें आईं, कितनी निपटीं, औसत समय क्या है। ब्लॉक स्तर पर ओपन डेटा। पारदर्शिता भरोसा बढ़ाती है।
राजनीतिक धरातल पर मतलब
महिला मतदाता आज निर्णायक हैं। पंचायतों में पचास प्रतिशत आरक्षण, क्रेच फैसिलिटी, कौशल कार्यक्रम, अब ये मासिक सहायता। ये सब मिलकर एक नैरेटिव बनाते हैं कि राज्य महिला हितैषी है। लेकिन जनता भावुक है पर भूलक्कड़ नहीं। अगली बार जब सिलेंडर की बुकिंग होगी, जब बस स्टैंड पर इंतजार होगा, तब स्कीम की याद आएगी। अगर पैसे समय पर पहुंचे, रोक टोक बिना, तब बल्ला घुमेगा जैसे छक्का। वरना व्हाट्सऐप यूनिवर्स में मेमे तैयार हैं।
फील गुड, पर ग्रोथ कनेक्ट कैसे बने
मेरी राय में इस स्कीम की सबसे अच्छी बात यह हो सकती है कि महिलाओं के बैंक खाते में नियमित ट्रांजैक्शन क्रेडिट हिस्ट्री बनाते हैं। फिर माइक्रो लोन लेना, एलआईसी का छोटा प्रीमियम देना, या स्वयम सहायक समूह में बचत बढ़ाना सहज होता है। सरकार चाहे तो स्कीम को फाइनेंशियल लिटरेसी मॉड्यूल से जोड़ सकती है। हर क्रेडिट के साथ पांच मिनट की ऑडियो टिप। बजट बनाना, धोखाधड़ी पहचानना, यूपीआई पिन न साझा करना, यही छोटे कदम बड़े बदलाव लाते हैं।
क्या सीख मिली बाकी राज्यों को
एक, नाम में लोकल टच रखिए। दो, ऐप सेंट्रिक डिजाइन तभी सफल जब ऑफलाइन बैकअप मजबूत हो। तीन, लक्ष्यीकरण आसानी से समझ आने लायक हो। चार, पब्लिक डैशबोर्ड से जवाबदेही बनती है। पांच, इंटरऑपेरबिलिटी। राशन कार्ड, पेंशन पोर्टल, परिवार आईडी, सब एक दूसरे से बात करें।
लॉन्च डे की जमीन से आवाज
मंच से घोषणाएं हुईं, लाइव रजिस्ट्रेशन दिखा, डाउनलोड नंबरों का जिक्र भी। ये सारी बातें एक संकेत देती हैं कि तैयारी पर काम हुआ है। पर मेरे अनुभव में, असली रुकावट पोस्ट लॉन्च के तीसरे हफ्ते में आती है। प्रारंभिक त्रुटियां ठीक हो जाती हैं, फिर मामूली पर लगातार रहने वाली बग्स सामने आते हैं। पासबुक मैपिंग, बैंक ब्रांच मर्जर, नाम में वर्तनी, आधार सीडिंग की पुरानी समस्याएं। इन्हें सुलझाने के लिए जिला स्तर पर स्पेशल कैंप, बैंक मित्र और महिला स्वयंसेवक की संयुक्त टीम बनाएं।
जरा ठिठोली भी हो जाए
बॉलीवुड का डायलॉग याद है, डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। वैसे ही कुछ योजनाओं का लाभ लेना लोगों को पड़ता था। अब ऐप है तो मुश्किल कम होनी चाहिए। पर सावधान, पब्लिक वाईफाई पर केवाईसी करना डॉन को खुले में कॉन्फिडेंस देने जैसा है। अपने डेटा को अपना ही रखें। और जो लोग हर बात पर कहते हैं, भाई स्क्रीनशॉट भेज दे, उनसे कहें पंचायत में मिलते हैं, वहीं दिखा देंगे।
आईपीएल वाली तुलना
पॉलिसी मेकिंग भी क्रिकेट जैसी। पावरप्ले में तेजी से रन बना लो यानी लॉन्चिंग और रजिस्ट्रेशन स्प्रिंट में राज्य आगे निकल जाए। मिडिल ओवर्स में टिकना है, यानी ग्रिवांस, वेरिफिकेशन, बैंक रीकन्सिलियेशन शांत दिमाग से संभलो। डेथ ओवर्स यानी डिस्बर्सल के दिन। अगर उस दिन ऐप अटक गया, भुगतान फेल हुआ, तो पूरा टोटल झटके खा लेता है। टीमवर्क ही मैच जिताएगा।
क्विक चीटशीट: आप क्या करें आज ही
- आधार, बैंक पासबुक, परिवार पहचान कार्ड की साफ फोटो फोन में सेव करें।
- ऐप इंस्टॉल के बाद प्रोफ़ाइल बनाते समय वही नाम लिखें जो बैंक में है।
- परिवार की आय का प्रमाण जो भी उपलब्ध हो, तैयार रखें।
- अगर फोन पुराना है, तो स्टोरेज खाली करें। ऐप को अपडेट करते रहें।
- आवेदन नंबर नोट करें और महीने के पहले हफ्ते स्टेटस देखना आदत बनाएं।
आखिरी बात: उम्मीद की डोर, जिम्मेदारी की गांठ
लाडो लक्ष्मी योजना राजनीतिक घोषणा से आगे बढ़कर रोज के जीवन की छोटी छोटी उलझनें सुलझा सकती है। शर्त यही कि सिस्टम ईमानदार, टेक्नोलॉजी भरोसेमंद और संचार स्पष्ट रहे। अगर सरकार लगातार डेटा साझा करती रहे, जिलों की रैंकिंग दिखाती रहे, और समय पर भुगतान करे, तो ये स्कीम हरियाणा की महिलाओं के लिए सिर्फ स्कीम नहीं, एक आदत बन जाएगी।
आपकी बारी
अगर आपने आवेदन किया है, आपका अनुभव कैसा रहा। क्या ओटीपी फंसा, या सब चिकना। नीचे कमेंट में बताइए, अपनी सहेली को व्हाट्सऐप पर ये लेख भेजिए। और हां, महीने के अंत में पासबुक पर नजर डालना मत भूलिए। हो सकता है वह 2100 Rupees चुपचाप आकर कल की चिंता कम कर दे।