Solar Pump Subsidy 2025 का नाम सुनते ही गांव की चौपाल से लेकर WhatsApp ग्रुप तक एक ही मैसेज घूम रहा है कि यूपी के किसानों को सोलर पंप पर 90 प्रतिशत तक सब्सिडी मिलेगी, बस फॉर्म भरो और अगले हफ्ते पंप घर पहुंच जाएगा. सच्चाई क्या है, अफवाह क्या है, और आपके लिए सही कदम क्या होना चाहिए, यही इस लेख का मकसद है. मैं हूं यूपी का देसी ब्लॉगर, इंटर पास CBSE और खेत खलिहान की धूल खाते खाते जो समझ आया है, वही असलियत आपके सामने रख रहा हूं. थोड़ा भावुक होऊंगा, थोड़ा हंसी मजाक भी, और जहां जरूरी लगेगा वहां पक्की बात.
सबसे पहले, यह 90 प्रतिशत वाला जादू क्या है
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और ग्रुप मैसेज कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में सोलर पंप अब 90 प्रतिशत सब्सिडी पर मिलेंगे. मतलब दो लाख का पंप हुआ तो किसान दे बस बीस पच्चीस हजार, बाकी सरकार और संस्थाएं देखेंगी. सुनने में सपना जैसा, IPL में आख़िरी ओवर में छक्का लगने जैसा. पर हर सपना हकीकत नहीं होता, और हर छक्का बाउंड्री के अंदर फील्डर भी पकड़ लेता है. इसलिए जरा ठंडे दिमाग से जांच जरूरी है.
PM-KUSUM असल में है क्या, और अभी चल क्या रहा है
किसानों के लिए सोलर पंप का सबसे बड़ा सरकारी छाता PM-KUSUM योजना है. इसके तहत अलग अलग राज्यों में अलग मॉडल चलते हैं. कहीं स्टैंडअलोन ऑफ ग्रिड पंप, कहीं ग्रिड कनेक्टेड सोलराइजेशन, कहीं फीडर लेवल काम. साल दर साल टारगेट, टेंडर, ऑर्डर बुक, सब बदलते रहते हैं. आज की तारीख 16 September 2025 को भी इस योजना के तहत नए प्रोजेक्ट्स, सप्लायर कंपनियों के ऑर्डर और राज्य वाली घोषणाएं खबरों में हैं. यानी स्कीम जिंदा है, आगे बढ़ रही है, फाइलें चल रही हैं.
क्यों मायने रखता है यह बैकग्राउंड
क्योंकि जब योजना असल में चालू हो, तभी सब्सिडी की बात पर भरोसा किया जा सकता है. खाली फॉरवर्ड में मुफ्त में पंप लिख देने से पंप आपके खेत में जादू से नहीं उगता. असल प्रक्रिया में आवेदन, वेरिफिकेशन, अलॉटमेंट, वेंडर से इंस्टॉलेशन, नेट मीटरिंग या ऑफ ग्रिड सेटअप, और आखिर में सब्सिडी रिलीज़ शामिल रहते हैं. यानी लंबी कहानी.
90 प्रतिशत बनाम 60 से 75 प्रतिशत, असल अंतर कहां छुपा है
ईमानदारी से कहा जाए तो भारत में सोलर पंप सब्सिडी का आम ढांचा 60 से 75 प्रतिशत के बीच झूलता रहा है. कई जगह सेंटर और स्टेट मिलकर बोझ उठाते हैं, कुछ जगह किसान की हिस्सेदारी 25 से 40 प्रतिशत के बीच रहती है. अब यह 90 प्रतिशत कहाँ से आ रहा है. दो वजहें संभव हैं.
- राज्य-विशेष पैकेज: कुछ राज्यों में सीमित स्लॉट, खास श्रेणियों के लिए या पायलट के रूप में हाई सब्सिडी दिखती है. यह हर जिले या हर किसान पर लागू नहीं होती.
- गणित का खेल: केंद्र की सहायता, राज्य की टॉप-अप, डिस्काउंटेड बिड प्राइस और किसी वित्तीय संस्था की सहायता जोड़ दें तो मेसेज बनाने वाले 90 प्रतिशत लिख देते हैं. मगर कागज पर जब आप ऑर्डर देते हैं, तो मैदान में देय राशि अक्सर 25 से 40 प्रतिशत के आसपास निकलती है. कुछ मिसालों में कम भी रही है, पर सर्वव्यापी 90 प्रतिशत का दावा भारी-भरकम लगता है.
यूपी वाले किसान भाई, आपके लिए क्या संकेत दिखते हैं
उत्तर प्रदेश में सोलर की हवा चल रही है, यह पक्की बात. छतों पर रूफटॉप से लेकर खेतों में पंप तक, आवेदन बढ़ रहे हैं. विभाग, एजेंसियां, वेंडर सब भागदौड़ में हैं. मगर एक ही झटके में 90 प्रतिशत सब्सिडी सबको मिल रही है, ऐसा आधिकारिक नोटिफिकेशन खुलकर और राज्यव्यापी स्तर पर फिलहाल सामने नहीं आया. हां, खबरें, प्रेस नोट, इंडस्ट्री ऑर्डर और बोली प्रक्रिया की बातें रोज आती हैं. इस शोर में सही लिंक, सही पोर्टल और सही टाइमलाइन पकड़ना ही समझदारी है.
मेरी राय, ठेठ देहाती कॉमन सेंस
अगर आपको आज ही 90 प्रतिशत का SMS या WhatsApp आए और बोले कि दो हजार एंट्री फीस भेजो, तो भाई साहब, पहले रोक लो. आधिकारिक पोर्टल पर लॉगइन करो, जिले के नोडल से पूछो, और वेंडर के एम्पैनलमेंट दस्तावेज देखो. QR कोड स्कैन करके पैसा देने से पहले दो फोन कर लो. फसल उगानी है, धंधा करना है, ठगी नहीं.
कितने HP का पंप, कितने पैनल, कितनी बचत, एक देसी हिसाब
अब तकनीकी बात को आसान भाषा में. गांव की बोली में मान लो आपके पास 3 HP, 5 HP, 7.5 HP, 10 HP वाले विकल्प आते हैं. ऑफ ग्रिड पंप में सोलर पैनल से सीधे मोटर चलती है. ग्रिड कनेक्टेड सेटअप में नेट मीटरिंग का झमेला आता है. पैनल का रेंज 2 Kilowatt से 10 Kilowatt के आसपास घूमता है, साइट के हिसाब से. पानी की गहराई, बोरवेल का स्टैटिक लेवल, पाइप का डायमीटर, और डिज़ाइन हेड तय करता है कि आपकी मोटर कितनी HP होगी. यह वैसा ही है जैसे खेत का मिट्टी टेस्ट किए बिना खाद झोंकना. पहले सर्वे, फिर डिसिजन.
बचत का जमीनी अनुभव
डीज़ल से चल रहा 5 HP का पंप अगर सोलर पर चला तो आपकी किलो में डली खाद और लीटर में जला डीज़ल दोनों की लागत में कटौती दिखेगी. मासिक बिल में राहत, और दिन में धूप जितनी तेज उतना पानी. हां, बादल वाले दिनों में आउटपुट घटता है, पर सिंचाई का प्लान बनाकर चलेंगे तो प्रॉब्लम मैनेज हो जाती है. ड्रिप और स्प्रिंकलर जोड़ेंगे तो दक्षता और बढ़ेगी. यह सब्सिडी के अलग, आपकी जेब की असल बचत है.
UP में 90 प्रतिशत की चर्चा क्यों वायरल होती है
सीधी बात, क्योंकि यह भावनाओं को पकड़ती है. किसान भाई चाहता है कि बिजली की चिंता खत्म, फसल का पानी टाइम पर, और जेब पर कम भार. जब किसी जिले में दो दर्जन किसानों को किसी खास श्रेणी में ज्यादा सब्सिडी मिलती है, तो गांव गांव किस्सा घूम जाता है कि भइया सबको 90 प्रतिशत. सोशल मीडिया का एल्गोरिथ्म भी बड़ी छूट सुनते ही पोस्ट को हवा दे देता है. जैसे बॉलीवुड में जब कोई सुपरस्टार शादी करता है तो मेमेज़ बनते बनते पूरी टाइमलाइन भर जाती है, वैसे ही यहां 90 प्रतिशत सुनते ही सभी शेयर बटन दबा देते हैं.
सच और अफवाह का फर्क कैसे पहचानें
- ऑफिशियल पोर्टल पर देखें कि आपके जिले की लाइव स्कीम क्या है, कॉस्ट शेयरिंग का अनुपात कितना दिख रहा है, और वेंडर कौन हैं.
- टेंडर डॉक्यूमेंट या एम्पैनलमेंट लिस्ट में किसान का योगदान साफ लिखा होगा. यही असली चाबी है.
- डिस्ट्रिक्ट नोडल ऑफिस या किसान कॉल सेंटर पर फोन करके आवेदन की स्थिति और पैसे जमा करने का तरीका पूछें.
- एडवांस पेमेंट की मांग हो तो रसीद और कॉन्ट्रैक्ट के बिना न दें. वेंडर से साइट सर्वे, लोड कैलकुलेशन और बोना फाइड लेटर लें.
किसान की जेब से कितना जाएगा, एक मिसालनुमा गाइड
मान लीजिए 5 HP का ऑफ ग्रिड पंप कुल मिलाकर चार लाख के आसपास बैठता है. अगर कंबाइंड सब्सिडी 60 से 75 प्रतिशत है तो आपकी जेब से लगभग एक लाख से डेढ़ लाख के बीच. अगर कहीं 90 प्रतिशत लागू है तो किसान का हिस्सा चालीस पचास हजार के आसपास. लेकिन यह अगर बहुत बड़ा है. इसलिए अपने जिले का वर्तमान शेयरिंग पैटर्न ही निर्णायक है.
SC, ST, लघु और सीमांत किसानों के लिए
कई बार सोशल कैटेगरी या लघु सीमांत किसानों के लिए अतिरिक्त सहायता होती है. इससे वास्तविक किसान योगदान और कम हो जाता है. WhatsApp मेसेज यहीं से 90 प्रतिशत का हेडलाइन निकाल लेता है, पर नियम सबके लिए कॉपी पेस्ट नहीं होते.
टेक्निकल स्पेक्स पर थोड़ा तड़का
- पैनल: आमतौर पर 540 से 600 Watt के मोनो PERC पैनल, 5 HP सिस्टम के लिए 8 से 12 पैनल का एरे, साइट पर डिपेंड.
- इन्वर्टर VFD: पंप मोटर के RPM को धूप के हिसाब से एडजस्ट करता है, पानी का फ्लो स्मूद रहता है.
- मोटर: सबमर्सिबल या सरफेस, 3 फेज BLDC या AC इंडक्शन, हेड और डिस्चार्ज के अनुसार चयन.
- स्ट्रक्चर: GI या एल्यूमीनियम, 25 से 35 डिग्री टिल्ट, एन्टी रस्ट कोटिंग और विंड लोड टेस्टेड.
- ओएम: सालाना बेसिस पर क्लीनिंग, कनेक्शन टाइटनिंग, और एक बार मेगा क्लीन फसल से पहले.
ये स्पेक्स इसलिए लिखे कि जब वेंडर आपको चार्ट दिखाए, तो आप साइन करने से पहले दो सवाल पूछ पाएं. यही असली किसान स्मार्टनेस है.
रूफटॉप बनाम पंप, कौन ज्यादा फायदे का
रूफटॉप में छत पर 1 किलोवॉट से 5 किलोवॉट तक लगाकर बिल एडजस्टमेंट होता है. पंप में खेत को सीधी सुविधा. जहां बिजली की लाइन अनियमित हो, वहां पंप ज्यादा काम का. जहां बिल ज्यादा आता हो, वहां रूफटॉप. दोनों में सब्सिडी के नियम अलग हो सकते हैं. कई किसान मिक्स मॉडल अपनाते हैं, घर पर रूफटॉप, खेत में ऑफ ग्रिड पंप. फसल और जेब दोनों खुश.
कागज कलम की चेकलिस्ट, यह काटो और संभाल लो
- आवेदन ऑनलाइन, सही पोर्टल पर. फर्जी वेबसाइट से बचें.
- आधार, बैंक पासबुक, जमीन के कागज, बिजली कनेक्शन डिटेल्स तैयार रखें.
- वेंडर एम्पैनल्ड है या नहीं, यह पहले देख लें.
- साइट सर्वे रिपोर्ट और कोटेशन पर किसान योगदान स्पष्ट हो.
- पंप की HP, पैनल संख्या, इन्वर्टर मॉडल, वारंटी और सर्विस विजिट लिखित में लें.
- अग्रिम भुगतान की रसीद, कंपनी मुहर और तिथि अवश्य.
थोड़ा भावुक सच: अफवाह क्यों नुकसान करती है
जब 90 प्रतिशत जैसी खबर फैलती है और बाद में 60 या 70 प्रतिशत पर बात आती है, तो किसान को लगता है धोखा. असल में योजना बुरी नहीं थी, बस उम्मीद बहुत बड़ी हो गई. यही मनोविज्ञान ठगों के लिए मौके बनाता है. इसलिए उम्मीद रखें, पर प्रमाण देखकर. अपनी मेहनत की कमाई बचाइए, खेत की मिट्टी आपकी सबसे बड़ी पूंजी है.
मेरी फाइनल राय: 90 प्रतिशत अभी सर्वजनिक और सार्वभौमिक सच नहीं
यूपी में सोलर पंप सब्सिडी के मजबूत मौके हैं, आवेदन की गति भी दिख रही है. मगर सभी किसानों के लिए फ्लैट 90 प्रतिशत की आधिकारिक, राज्यव्यापी पुष्टि इस वक्त तक सामने नहीं है. कुछ खास श्रेणियों, सीमित स्लॉट्स या पायलट में संख्या अलग हो सकती है. इसलिए इस दावे को आधे सच और आधे शोर के रूप में समझें. खेल जारी है, पर स्कोरबोर्ड पर आंख रखें.
क्लिक करने लायक निष्कर्ष, पर काम की सलाह
- सब्सिडी अच्छी है, पर 90 प्रतिशत को डिफॉल्ट मत मानें.
- अपने जिले की लाइव गाइडलाइन देखें, वेंडर से लिखित कोटेशन लें.
- फर्जी कॉल और अग्रिम फीस से सावधान, खासकर आज ही आखिरी तारीख वाले दबाव से.
- टेक्निकल सर्वे को प्राथमिकता दें, मोटर HP और पैनल साइज में जल्दबाजी न करें.
थोड़ा मसाला, थोड़ी मोटिवेशन
सोचिए, रबी की सिंचाई समय पर, ट्यूबवेल पर लाइन नहीं, डीज़ल के ड्रम की झंझट नहीं, धूप है तो पानी है. यही सोलर का रोमांस है. फसल का म्यूजिक तेज हो, और बिजली का ड्रामा कम. अगर कागज पक्का, वेंडर सच्चा और सब्सिडी का हिसाब साफ है, तो सोलर पंप से आपकी लागत घटेगी, पैदावार संभलेगी, और खेत का मन भी लगेगा. बाकी 90 प्रतिशत वाला पोस्ट आए तो पहले साइलेंट कर दो, फिर असली लिंक ढूंढो. जैसे फिल्म में आइटम सॉन्ग अच्छा लगता है, पर पूरी कहानी नहीं बदलता, वैसे ही यह हेडलाइन भी अच्छी लगती है, पर फार्म हाउस का नक्शा कागज से बनता है, फॉरवर्ड से नहीं.
FAQ, गांव की भाषा में
सवाल 1: क्या इस साल मेरा योगदान शून्य हो सकता है
बहुत कम मामलों में ही. आमतौर पर कुछ न कुछ किसान शेयर देना पड़ता है, चाहे वह बीस हजार हो या एक लाख. कैटेगरी और जिले के हिसाब से तय होता है.
सवाल 2: कितने दिन में इंस्टॉलेशन हो जाएगा
अगर फाइलें साफ, स्टॉक उपलब्ध और सर्वे समय पर, तो 30 से 90 दिन. कभी टेंडर लूप या भंडारण में देरी से टाइम बढ़ता है.
सवाल 3: क्या मैं पुराने डीज़ल पंप को सोलर में बदल सकता हूं
हां, पर नियम पढ़कर. कई जगह सोलर पंप लगने पर पुरानी बिजली कनेक्शन की एंट्री बंद कर दी जाती है. कागज देख लें.
सवाल 4: क्या रूफटॉप लगाकर बिल जीरो होगा
कई घरों में बिल बहुत कम हो जाता है, पर जीरो की गारंटी मत मानें. लोड, धूप और नेट मीटरिंग के नियम पर निर्भर.
आखिरी बात, किसान भाई की जीत
सोलर पंप कोई जादुई छड़ी नहीं, पर यह भरोसेमंद औजार है. सही साइजिंग, सही वेंडर और सही सब्सिडी मॉडल के साथ यह आपकी लागत काट सकता है. 90 प्रतिशत की हेडलाइन क्लिकबेट है, पर 60 से 75 प्रतिशत का ठोस लाभ भी कोई कम नहीं. आज की सीख यही कि कागज देखो, पोर्टल देखो, और फिर पक्का कदम उठाओ. खेत आपकी मेहनत से चलता है, और नीतियां आपकी समझ से.